हम ऐसी खबरों के आदि हों गए है कि किसी ट्रक ने एक दो को कुचल दिया. पिछले ही दिनों कि बात है. दो लडकिया सुबह अपने स्कूल के लिए अपने वाह न पर जा रही थी. उन्हें एक ट्रक ने टक्कर मारकर कुचल दिया. कुछ लोगो का कहना है, गलती ट्रक वाले की थी. परन्तु यह गलत है. कुछ गलती उन लडकियों की भी रही होगी.
आजकल के नवयुवको को वाहन मिले, फिर क्या? ये तो सडको के बादशाह हों गए. वे समझते है कि वे अकेले ही सड़क पर चल रहे है. यातायात नियमो को तो तोड़ना जेसे उनका जन्मसिद्ध अधिकार है, और तो और बिना लाइसेंस कि गाडिया चलाते है.
गाडी चलते समय वे ऐसे चलाते है. कि वे गाडी पर नहीं, बल्कि हवाई जहाज पर सवार है. और दुनिया भर कि जल्दी इन्ही को रहती है. नवयुवको को ही क्यों दोष दे, बड़े भी ये गलतिया करते है. मुड़ते समय कभी भी साइड देंगे नहीं.
एकदम मुद जायेंगे और फिर चढ़ जायेंगे मौत की भेट. दोष पुनह ट्रक वालो पर. ऐसी बात नहीं है कि ट्रकवाले एकदम दूध के धुले है. वे सभी जगहों पर एक ही स्पीड में गाडी चलाते है. और सामने आने वालो को उडा देते है.
शराब पीकर भी गाडी चलाते है. वे एक ट्रिप जल्दी से जल्दी दूसरी ट्रिप ले जाना चाहते है, जिससे उन्हें ज्यादा पैसे मिले और वे अपनी ज्यादा आवश्यकताओ कि पूर्ति कर सके. रुपयों के पीछे तो सारी दुनिया भाग रही है, तो वे क्यों न भागे.
परन्तु यह कैसी अंधाधुन्द भागदौड है, जिसके लिए हम दुसरो कि जान कि कोई कीमत न समझे, सिर्फ भागे जाये. पैदल चलने वालो को तो खुदा ही बचाए. वे सडको पर इस प्रकार चलते है कि पूरी सडक उनके बाप की है. फिर वे फुटपात पर या सड़क के एक तरफ क्यों चले?
सडको के बीचो बीच न चले बिना दाये बाए देखे ही सड़क पार करते है. जब जी में आया, तब मूड जाते है. जहाँ से सड़क पार करना चाहिए, वहाँसे तो एक कुत्ता भी गुजरता. मिला वर्ग को कोण कुछ कह सकता है? वे तो सडको को ही ब्यूटी कांटेस्ट का मंच समझती है.
जैसे कि इनमे से ही कोई मिस युनिवर्स या मिस वर्ल्ड बनने वाली हों. जहाँ फुटपाथ होते है, वहाँ से लोग जायेंगे नहीं. अपना खुद का ही फुटपाथ बनाकर वहा चलते है. आजकल फुटपाथो अपर प्रायः बिखारियो को ही देखा जा सकता है.
स्कूलों के विद्यार्थी कभी यातायात नियमो का पालन नहीं करते है. वे हमेशा ५ और ६ के झुंडो में चलते है, जैसे सिर्फ वे ही उस सड़क से गुजर रहे है. जहाँ पर लिखो हों कि यह एकांगी मार्ग है, जहाँ पर सबसे अधिक वाहन मिलने और अधिक भीड़ होगी.
जहाँ नो पार्किंग है, वहाँ हमेशा वाहन होंगे. जहाँ कोई कार्य निषेध है, वहाँ तो वही कार्य होगा. ऐसी विचित्र हालत है हमारे देश की. लोगो का कहना है कि यह सब प्रशासन का कार्य है, ट्रैफिक पुलिस क्या कर रही है?
यह बात सही है कि कुछ हद तक हमारा प्रशासन भी इसके लिए जिम्मेदार है. ट्रैफिक पुलिस वाले अधिकतर चौराहों पर नहीं मिलते है. मिलते भी हों तो सिर्फ खड़े ही मिलेंगे. पुलिस वाले भी शिष्टाचारी है. वे साइकल वालो को नही पकड़ते.
वे लोगो कि हैसियत देखकर उन्हें पकड़ते है. और अपनी जेब गरम करते है. इन सब के लिए जनता भी जिम्मेदार है. हम पुलिस वालो को प्रोत्साहन देते है. उन्हें हम रिश्वतखोर बनाते है. चक्का जाम तो आजकल फेशन हों गया है.
कुछ भी माँग हों, तो करो चक्का जाम. इस वजह से कितने ही लोगो को तकलीफ होती है. कितने ही लोगो कि बसे और ट्रेने छुट जाती है. कितने हों लोगो के जरुरी काम चक्काजाम से हम कितने पीछे चले जाते है, हम यह नहीं सोचते है.
कारखानों में कच्चा माल चक्का जाम कि वजह से देरी से पहुचता है. लोग समय पर नहीं पहुचते है. हमारे नेता और मंत्री तो अच्छा खासा हंगामा खड़ा कर देते है. नेता उसी मार्ग से जाते है, जहाँ से अधिकतर लोग जाते है.
यह ख्याल नहीं रखते है कि हम इस मार्ग से जा रहे है तो कुछ देर के लिए यह मार्ग से जा रहे है तो कुछ देर के लिए यह मार्ग बंद करना होगा और लोगो कि भीड़ बहुत दूर तक फेल जाएगी, क्योकि उनके लिए उस मार्ग के अलावा ऐसा मार्ग बचता है,
जहाँ से जानवर जाते है, अर्थात गली कुचे वहाँ से स्कूटर या कारवाले नहीं जा सकते है. नेताओ को चाहिए कि वे ऐसे मार्गो से ना जाये, जिससे कि लोगो को तकलीफ हों और जाना आवयश्क भी हों तो लोगो के लिए दूसरा मार्ग है कि नहीं यह देखकर जाएँ.
इस मामले में विदेशो कि स्थिति ठीक है. वहाँ पर सडको पर व्यवस्तता तो रहती है. परन्तु वहाँ लोगो को तकलीफ नहीं होती है. आज लोगो कि मनोव्रती ऐसी हों गई है कि “आ बैल मुझे मार”. लोग यातायात निगम का पालन क्यों नही करते, यह समझ में नहीं आता.
या तो उन्हें यातायात निगम ही नहीं मालुम है, या मालूम होते हुए भी उनका पालन नहीं करना चाहते. जरुरत है लोगो कि मनोव्रत्ति बदलने कि और यातायात नियमो का पालन करने और करवाने की. तभी सड़को पर होने वाला मौत का तांडव रुक सकता है।
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